JABALPUR. अंतरजातीय विवाह करने पर धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत कार्रवाई नहीं किए जाने की मांग के संबंधित अंतरिम आवेदन पर हाईकोर्ट में बहस पूरी हो गई है। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित कर लिया है। इस मामले में एलएस हरदेनिया व आजम खान सहित आठ लोगों की ओर से याचिकाएं दायर की गई थीं।
धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती
इन याचिकाओं में मध्यप्रदेश शासन द्वारा लागू किए गए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इस सिलसिले में गुजरात व राजस्थान हाईकोर्ट के न्याय दृष्टांतों का हवाला देते हुए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के अंतर्गत अंतरजातीय विवाह के मामलों में कार्रवाई न किए जाने संबंधी अंतरिम राहत चाही गई है। इसी सिलसिले में जस्टिस सुजय पॉल व जस्टिस पीसी गुप्ता की युगलपीठ डबल बेंच के समक्ष याचिकाकर्ताओं के अंतरिम आवेदनों पर सीनियर एडवोकेट मनोज शर्मा व हिमांशु मिश्रा सहित अन्य की ओर से बहस की गई। इस मामले में दलील दी गई कि यदि धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के दायरे से अंतरजातीय विवाह के बिंदु को पृथक न किया गया तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन होगा।
तीन से दस साल तक की सजा हो सकती है
यदि अंतरिम राहत की मांग पूरी न हुई तो अंतरजातीय विवाह की सूरत में आरोप साबित होने पर विवाह शून्य होने के अलावा संबंधितों को तीन से दस साल तक की सजा हो सकती है। शिकायतकर्ता के रूप में माता पिता से लेकर अन्य ब्लड रिलेशन से संबंधितों को दिया गया अधिकार भी घातक साबित होगा। राज्य शासन की ओर से अंतरिम राहत की मांग का विरोध किया गया। दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद हाई कोर्ट ने अंतरिम आवेदन पर अपना आदेश सुरक्षित कर लिया। यदि अंतरिम राहत की मांग पूरी न हुई तो अंतरजातीय विवाह की सूरत में आरोप साबित होने पर विवाह शून्य होने के अलावा संबंधितों को तीन से दस साल तक की सजा हो सकती है। शिकायतकर्ता के रूप में माता पिता से लेकर अन्य ब्लड रिलेशन से संबंधितों को दिया गया अधिकार भी घातक साबित होगा। राज्य शासन की ओर से अंतरिम राहत की मांग का विरोध किया गया। दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने अंतरिम आवेदन पर अपना आदेश सुरक्षित कर लिया।